डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी विश्वविद्यालय में करमा उरांव की द्वितीय पुण्यतिथि पर संगोष्ठी.

झारखंड/बिहार

डॉ. करमा उरांव की द्वितीय पुण्यतिथि पर डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी विश्वविद्यालय में श्रद्धांजलि सभा, युवाओं की भूमिका पर विशेष व्याख्यान

प्रमुख बिंदु:

  • झारखंड में युवा शक्ति और सामाजिक दायित्व पर व्याख्यान

  • आदिवासी समाज के बौद्धिक स्तंभ रहे डॉ. करमा उरांव को दी गई श्रद्धांजलि

  • विभिन्न जनजातीय भाषा विभागों के शोधार्थियों और शिक्षकों की उपस्थिति

  • डॉ. करमा उरांव के जीवन और योगदान पर वक्ताओं ने रखे विचार



करमा उरांव के योगदान को याद करते हुए मनाई गई पुण्यतिथि

रांची: डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी विश्वविद्यालय, रांची के कुड़ुख विभाग में आज 14 मई 2025 को डॉ. करमा उरांव की द्वितीय पुण्यतिथि पर श्रद्धांजलि सभा का आयोजन किया गया। इस अवसर पर “झारखंड में युवा शक्ति और सामाजिक दायित्व” विषय पर विशेष व्याख्यान आयोजित हुआ।

Seminar on the second death anniversary of Karma Oraon at Dr. Shyama Prasad Mukherjee University.
करमा उरांव की द्वितीय पुण्यतिथि पर संगोष्ठी

कार्यक्रम की शुरुआत करमा उरांव के छायाचित्र पर पुष्पांजलि अर्पित कर की गई। इसके बाद कुड़ुख विभाग की सहायक प्राध्यापिका सुनिता कुमारी ने उनके जीवन परिचय से सभी को अवगत कराया और विषय का सूत्रपात किया।


करमा उरांव: एक बौद्धिक और सामाजिक प्रेरणा

कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषाओं के समन्वयक डॉ. विनोद कुमार ने करमा उरांव के सामाजिक, धार्मिक और बौद्धिक योगदान पर बिंदुवार प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि डॉ. करमा उरांव युवाओं के लिए सदैव प्रेरणास्रोत बने रहेंगे क्योंकि उन्होंने आदिवासी समाज के भीतर से एक मजबूत नेतृत्व का उदाहरण प्रस्तुत किया।

करमा उरांव पुण्यतिथि
डॉ. करमा उरांव की पुण्यतिथि

मुख्य वक्ता के रूप में उपस्थित कुड़ुख विभाग के पूर्व विभागाध्यक्ष डॉ. रामदास उरांव ने कहा कि शिक्षा के क्षेत्र में करमा उरांव का योगदान अविस्मरणीय है। छात्र जीवन से ही उनमें नेतृत्व की क्षमता थी और वे एक निर्भीक व्यक्तित्व के रूप में हमेशा आगे रहे।


करमा उरांव: मानवविज्ञान में अंतरराष्ट्रीय पहचान

इस अवसर पर कुड़माली विभाग के डॉ. निताई चंद्र महतो ने कहा कि करमा उरांव एक प्रसिद्ध मानवविज्ञानी थे। उन्होंने शिक्षा के माध्यम से न केवल खुद को, बल्कि पूरे उरांव समाज को विश्व पटल पर मानवशास्त्रीय दृष्टिकोण से पहचान दिलाई।

कार्यक्रम में नागपुरी विभाग की डॉ. मालती बागिशा लकड़ा, मुंडारी की डॉ. शांति नाग, खोरठा की सुशिला कुमारी, खड़िया की शांति केरकेट्टा, और हो विभाग के दिलदार पूर्ति सहित कई शोधार्थी और छात्र-छात्राएं उपस्थित रहे।


आयोजन में दिखा विविध भाषाई प्रतिनिधित्व

कार्यक्रम का मंच संचालन नागपुरी विभाग के डॉ. मनोज कच्छप ने किया और धन्यवाद ज्ञापन खोरठा विभाग की सुशिला कुमारी ने प्रस्तुत किया।


करमा उरांव: एक जीवन, अनेक भूमिकाएं

डॉ. करमा उरांव का जन्म 24 अक्टूबर 1952 को गुमला जिले के विशुनपुर प्रखंड स्थित महुवा टोला गांव में हुआ था। वे बचपन से ही मेधावी छात्र थे। उन्होंने मानवशास्त्र में स्नातक, परास्नातक और पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। इसके बाद उन्होंने रांची विश्वविद्यालय के रामलखन सिंह यादव कॉलेज में अध्यापन आरंभ किया और बाद में पीजी विभाग में विभागाध्यक्ष तथा सामाजिक विज्ञान संकाय के अधिष्ठाता के रूप में भी कार्य किया।

इसके अलावा वे जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषा विभाग के प्रभारी और झारखंड के बुद्धिजीवी वर्ग के सक्रिय सदस्य भी रहे। अपने बहुआयामी योगदान के लिए वे आज भी झारखंड की अकादमिक और सामाजिक दुनिया में एक प्रेरणास्त्रोत माने जाते हैं। उनका निधन 14 मई 2023 को हुआ था।

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