वैश्विक मंच पर झारखंड की उपस्थिति
बंगाल ग्लोबल बिजनेस समिट में झारखंड की भागीदारी एक महत्वपूर्ण कदम है, लेकिन सवाल यह उठता है कि क्या राज्य इस मंच का पूरा लाभ उठा पा रहा है? देश-विदेश से आए प्रतिनिधियों से मुलाकात और व्यापारिक संभावनाओं को समझने का दावा किया जा रहा है, लेकिन झारखंड सरकार की अब तक की नीति निवेशकों को आकर्षित करने में कितनी सफल रही है, यह विचारणीय विषय है।
झारखंड और बंगाल: साझी विरासत, अलग विकास गति
ऐतिहासिक और सांस्कृतिक रूप से झारखंड और बंगाल की जड़ें एक रही हैं, लेकिन आर्थिक विकास के मामले में दोनों राज्यों की गति अलग रही है। बंगाल लगातार निवेश आकर्षित कर रहा है, वहीं झारखंड में अब भी नीतिगत अस्थिरता, नौकरशाही की सुस्ती और अवसंरचना की कमी जैसी चुनौतियां बनी हुई हैं। ऐसे में सिर्फ साझा इतिहास का उल्लेख कर लेना पर्याप्त नहीं, बल्कि झारखंड को अपनी नीतियों में ठोस बदलाव लाने की जरूरत है।
उद्योग और निवेश: वादे बनाम हकीकत
एमएसएमई, टूरिज्म, माइनिंग, सोलर और टेक्सटाइल जैसे क्षेत्रों में झारखंड में अपार संभावनाएं होने की बात कही जा रही है, लेकिन राज्य सरकार अब तक इन क्षेत्रों में कितने ठोस निवेश ला पाई है? माइनिंग सेक्टर में अपार संसाधन होने के बावजूद स्थानीय उद्योगों को बढ़ावा नहीं मिल रहा है। एमएसएमई सेक्टर सरकारी सहायता की कमी से जूझ रहा है, जबकि टूरिज्म में आधारभूत संरचना का अभाव विकास की राह में बाधा बना हुआ है।
क्या बंगाल के साथ गठजोड़ से झारखंड को फायदा होगा?
मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के साथ झारखंड के आर्थिक विकास को गति देने की बात कही जा रही है, लेकिन बड़ा सवाल यह है कि क्या झारखंड को वास्तव में इससे कोई लाभ मिलेगा? बंगाल के आर्थिक मॉडल से झारखंड कितना सीख सकता है, यह तो भविष्य बताएगा, लेकिन यह स्पष्ट है कि झारखंड को अपने निवेश माहौल को सुधारने, पारदर्शी नीतियां अपनाने और इंफ्रास्ट्रक्चर को मजबूत करने की जरूरत है। वरना ये बड़े मंच सिर्फ औपचारिक बयानबाजी तक सीमित रह जाएंगे।