झारखंड की पांच एसटी रिजर्व सीटों पर भाजपा को करारी शिकस्त का सामना करना पड़ा है। दुमका, राजमहल, सिंहभूम, खूंटी और लोहरदगा इन सभी सीटों पर भाजपा के उम्मीदवारों की हार हुई है।
Highlights-
- सीता सोरेन कहीं की नहीं रहीं।
- लोबिन भी नहीं बिगाड़ सके खेल।
- गीता कोड़ा को जनता ने सिखाया सबक।
- अर्जुन मुंडा खूंटी से बाहर।
- चमरा लिंडा को जनता ने नकारा।
- अब बाबूलाल मरांडी का क्या होगा।
सीता सोरेन कहीं की नहीं रहीं।
दुमका लोकसभा सीट की बात करें तो सीता सोरेन को झारखंड मुक्ति मोर्चा छोड़ना भारी पड़ा है। भाजपा को भी लगा कि, सीता को पार्टी में शामिल करा लेने से उन्हे संताल में पांव जमाने में फायदा होगा लेकिन ऐसा नहीं हुआ। सोरेन परिवार को अपशब्द कहना भी सीता सोरेन और भाजपा को भारी पड़ा है। सीता सोरेन खुद अपने निर्णय से फंस गई। झामुमो ने उन्हे पहले ही पार्टी से 6 साल के लिए बाहर का रास्ता दिखा दिया है।
लोबिन भी नहीं बिगाड़ सके खेल।
राजमहल लोक सभा सीट में भी गुरुजी का जादू चला। यहां से झामुमो के बागी विधायक लोबिन हेंब्रम भी निर्दलीय तौर पर चुनाव लड़े लेकिन उन्हें भी मुंह की खानी पड़ी। बिना तीर और धनुष के निशान के उनको हार का सामना करना पड़ा। भाजपा प्रत्याशी ताला मरांडी को यहां करारी शिकस्त हुई। 2019 के चुनाव में विजयी रहे विजय हांसदा को झारखंड मुक्ति मोर्चा ने दोबारा टिकट दिया और उन्होने जीत दर्ज कर पार्टी का विश्वास एकबार फिर से जीता।
गीता कोड़ा को जनता ने सिखाया सबक।
सिंहभूम लोकसभा सीट की बात करें तो यहां से कांग्रेस की सांंसद रहीं गीता कोड़ा ने चुनाव से पहले बीजेपी में शामिल होकर चुनावी मैदान में उतरी। सिंहभूम की जनता ने उनके पार्टी छोड़ने के व्यवहार को स्वीकार नहीं किया और उन्हें जनाधार देने से इनकार कर दिया। सिंहभूम सीट से झारखंड मुक्ति मोर्चा की विधायक जोबा मांझी ने शानदार जीत दर्ज की।
अर्जुन मुंडा खूंटी से बाहर।
खूंटी लोकसभा सीट की बात करें तो यहां से केंद्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा 2019 के चुनाव में ही हार का सामना करने वाले थे लेकिन आखिरी वक्त में उनकी जीत हो जाती है। कांग्रेस के प्रत्याशी कालीचरण मुंडा 2019 के चुनाव में भी बेहतर प्रदर्शन किए थे। लिहाजा, 2024 में उन्होंने अर्जुन मुंडा को खूंटी से बाहर कर दिया। अर्जुन मुंडा पर केंद्रीय मंत्री रहते हुए भी आदिवासियों की उपेक्षा का गंभीर आरोप है।
चमरा लिंडा को जनता ने नकारा।
जहां तक लोहरदगा लोकसभा सीट का सवाल है तो यहां से कांग्रेस ने सुखदेव भगत को उतारा। जबकि भाजपा ने समीर उरांव को चुनावी मैदान में भेजा। इस बीच यहां भी झामुमो के बाग़ी विधायक चमरा लिंडा त्रिकोण बनाने की कोशिश करते रहे लेकिन जनता ने सुखदेव भगत के सिर पर ताज पहनाया।
अब बाबूलाल मरांडी का क्या होगा।
इन पांच आदिवासी रिजर्व लोकसभा सीटों में भाजपा की हार एक बड़ा संदेश देकर गई है। आदिवासियों के बीच भाजपा की नकारात्मकता उनपर भारी पड़ी है। सरना धर्मकोड का विषय हो या फिर डी-लिस्टिंग का मुद्दा हो। ये सभी ऐसे विषय रहे जो भाजपा के लिए नुकसान का सबब बने। बाबूलाल मरांडी जो खुद भी आदिवासी समाज से आते हैं। उनके रहते हुए सभी पांच एसटी रिजर्व सीट हारना अब भाजपा प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी पर भी खतरा मंडराने लगा है। पार्टी ने उन्हें फ्री हैंड दिया लेकिन बाबूलाल मरांडी उसका इस्तेमाल नहीं कर पाए। उन्हें अपने ही लोगों ने नकार दिया। ऐसे में विधानसभा चुनाव से पहले झारखंड बीजेपी में नेतृत्व परिवर्तन की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता है।