क्या भीतरघात की वजह से झारखंड में भाजपा सभी आदिवासी आरक्षित सीटों को हार गई। क्या भीतरघात की वजह से ही खूंटी, लोहरदगा, और दुमका जैसी सिटिंग सीटों में भी बीजेपी को हार का सामना करना पड़ा। क्या चुनाव के दौरान संगठन में एकरूपता की कमी रही। क्या चुनाव के दौरान जिन पार्टी नेताओं को शो कॉज किया गया उससे भी पार्टी में नाराजगी रही। सबसे अहम क्या विदेशी एजेंसियों की भी इस हार में भूमिका रही। ऐसे कई सवाल हैं जिसका बीजेपी समीक्षा कर रही है।
अधर में सीता सोरेन का राजनीतिक भविष्य। दुमका से मिली करारी शिकस्त।
शनिवार से भाजपा ने सभी जीती और हारी हुई सीटों का रिव्यू शुरू कर दिया है। इसकी शुरुआत सबसे पहले हजारीबाग, खूंटी, दुमका और चतरा सीट की समीक्षा के साथ शुरू हुई।
समीक्षा के दौरान एक जो महत्वपूर्ण बात सामने आई वो ये कि, कुछ विदेशी एजेंसियों ने चुनाव प्रचार के दौरान पर्चा बांटा था। जिसमें कहा गया था कि, 400 सीटें आने पर भाजपा संविधान बदल देगी। कश्मीर में जैसे भाजपा ने धारा 370 हटाया। वहां से स्पेशल स्टेटस को समाप्त किया। इसी प्रकार झारखंड में भी भाजपा आदिवासियों का हक छीन लेगी। भाजपा के वरिष्ठ नेता रहे रवींद्र राय ने इस बात को कहा है।
Jharkhand BJP- दिल्ली ने मांगी भीतर घातियों की रिपोर्ट। हार की होगी समीक्षा।
आपको बता दें कि, झारखंड में पांच लोकसभा सीटें आदिवासियों के लिए रिजर्व हैं। इन सभी पांच सीटों में बीजेपी को हार का सामना करना पड़ा है। ऐसे में भाजपा को आगामी विधानसभा चुनाव का डर सता रहा है कि, अगर यही स्थिति रही तो आगामी चुनाव में भी उन्हें बड़ा झटका लग सकता है।