जल-जंगल-जमीन के अधिकारों के लिए खरसांवा के आदिवासियों ने दी शहादत।

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खरसांवा शहीद दिवस: इतिहास का अमिट अध्याय

खरसांवा शहीद दिवस के अवसर पर आज मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन शहीद स्थल जाएंगे। पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा भी शहीद दिवस पर श्रृद्धांजलि अर्पित करने गए। आईये आज इतिहास के पन्नों को पलटें…

खरसांवा शहीद दिवस झारखंड के इतिहास का एक महत्वपूर्ण और भावनात्मक दिन है। हर साल 1 जनवरी को यह दिन उन आदिवासी शहीदों की स्मृति में मनाया जाता है, जिन्होंने अपनी जमीन और अधिकारों की रक्षा के लिए अंग्रेजों और रियासतों के अत्याचारों का विरोध करते हुए सर्वोच्च बलिदान दिया।

खरसांवा गोलीकांड: एक त्रासदी

  • तारीख: 1 जनवरी 1948
  • स्थान: खरसांवा, झारखंड
  • घटना: खरसांवा रियासत के आदिवासी लोग शांतिपूर्ण प्रदर्शन करते हुए अपनी मांगों को लेकर एकत्र हुए थे। इस दौरान पुलिस ने उन पर अंधाधुंध गोलीबारी कर दी।
  • शहीदों की संख्या: सटीक आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं, लेकिन सैकड़ों आदिवासी इस गोलीकांड में शहीद हुए।

गोलीकांड के पीछे कारण

  1. रियासतों का शोषण: झारखंड के आदिवासियों पर रियासतों द्वारा लगातार अत्याचार किया जा रहा था।
  2. आदिवासियों की मांगें:
    • ज़मीन पर अधिकार।
    • जल, जंगल, जमीन की रक्षा।
    • रियासतों के अन्याय और शोषण का अंत।

खरसांवा शहीद दिवस का महत्व

  • यह दिन आदिवासी समाज की एकता और उनके संघर्ष की याद दिलाता है।
  • खरसांवा शहीद स्थल पर श्रद्धांजलि देकर इन वीरों के बलिदान को नमन किया जाता है।

श्रद्धांजलि और आयोजनों की परंपरा

  • खरसांवा शहीद स्थल: झारखंड सरकार और स्थानीय समुदाय इस स्थान पर शहीदों को श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं।
  • सांस्कृतिक कार्यक्रम: आदिवासी नृत्य, गीत और पारंपरिक रीति-रिवाजों के माध्यम से शहीदों की स्मृति को जीवंत रखा जाता है।
  • सामाजिक आयोजन: शहीद दिवस पर उनके संघर्ष और बलिदान को आगे की पीढ़ियों तक पहुंचाने के लिए विशेष आयोजन किए जाते हैं।

आदिवासी संघर्ष की प्रेरणा

खरसांवा शहीद दिवस हमें यह संदेश देता है कि जल, जंगल, जमीन की रक्षा के लिए आदिवासियों ने अपने प्राणों की आहुति दी। उनका बलिदान साहस, एकता और अधिकारों की लड़ाई की प्रेरणा देता है।

“झारखंड की पवित्र भूमि के उन वीर शहीदों को नमन, जिन्होंने अपनी धरती और पहचान की रक्षा के लिए सर्वोच्च बलिदान दिया।”

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