ED की विशेष अदालत से झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को जमानत नहीं मिली। अंतरिम जमानत याचिका खारिज हो गई। हेमंत सोरेन अपने चाचा राजाराम सोरेन की अंत्येष्टि में शामिल होना चाहते थे। इसके लिए उन्होंने 13 दिनों की अंतिम जमानत की याचिका दाखिल की थी। याचिका पर ई़डी के विशेष न्यायाधीश राजीव रंजन की अदालत में सुनवाई हुई। दोनों पक्षों को सुनने के बाद अदालत ने पूर्व मुख्यमंत्री की जमानत याचिका खारिज कर दी।
लोकसभा चुनाव के दौरान हेमंत सोरेन की गैर मौजूदगी में झारखंड मुक्ति मोर्चा के लिए पार्टी संगठन संभालना और चुनाव की तैयारी को अमली जामा पहनाना नाम बेहद मुश्किल साबित हो रहा है। झारखंड मुक्ति मोर्चा जैसी क्षेत्रीय पार्टियों के लिए सबसे बड़ी मुसीबत यह है कि, इनका कोई सेकंड लाइन तैयार नहीं रहता है। एक व्यक्ति के इर्द गिर्द पूरी पार्टी घूमती है। यह बात आप आजसू या फिर दूसरी क्षेत्रीय पार्टियों पर भी लागू कर सकते हैं। यही वजह है कि, हेमंत सोरेन की ग़ैर मौजूदगी में पार्टी को कंट्रोल में रखना। चुनाव की तैयारी को अमली जामा पहनाना और चुनावी नैया पार लगाना बेहद मुश्किल साबित हो रहा है।
झारखंड मुक्ति मोर्चा के लिए सिर्फ यही परेशानी का सबब नहीं है कि, हेमंत सोरेन पिछले दो महीने से जेल में बंद हैं। बल्कि उनके लिए चुनौती यह भी है कि, हेमंत सोरेन की धर्मपत्नी कल्पना सोरेन को गांडेय उपचुनाव में जीत भी दिलानी है। कल्पना सोरेन के लिए यह राजनीतिक पारी की शुरुआत है। अगर इसमें कल्पना सोरेन कामयाब होती हैं तो उनका राजनीतिक सफर बेहतर हो सकता है नहीं तो उनके लिए मुश्किलों का पहाड़ टूट सकता है। यही वजह है कि, झारखंड मुक्ति मोर्चा पूरी ताकत से इस उप चुनाव को जीतने की तैयारी में जुटा हुआ है।
बगैर हेमंत सोरेन के झारखंड मुक्ति मोर्चा बहुत कंफर्टेबल नहीं है। ये दीगर बात है की जेल के अंदर से भी हेमंत सोरेन के निर्देश पार्टी को प्राप्त हो रहे हैं। हेमंत सोरेन की गैर मौजूदगी में पार्टी में बगावती तेवर भी अपनाए जा रहे हैं। बात चाहे चमरा लिंडा की करें या फिर लोबिन हेंब्रम की। हेमंत सोरेन के नहीं रहने के दौरान ही उनकी भाभी और जामा की पार्टी विधायक सीता सोरेन ने भाजपा का दामन थाम लिया। यह पार्टी के लिए और परिवार के लिए सबसे बड़ा चोट है।
संथाल और खासकर दुमका लोकसभा सीट बचाना झामुमो के लिए एक बड़ी चुनौती है। बीजेपी ने यहां से सीता सोरेन को उतार कर पार्टी को भारी परेशानी में डाल दिया है। एक तो हेमंत सोरेन चुनावी कसरत से दूर हैं। तो दूसरी तरफ उनके सामने एक से बढ़कर एक चुनौतियां हैं।
पार्टी को उम्मीद थी कि, ईडी की विशेष अदालत से हेमंत सोरेन को बेल मिल जाएगा लेकिन ऐसा नहीं हुआ। लिहाजा, अब पार्टी को सब कुछ अपने दम पर ही करना है।