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राजमहल में त्रिकोणीय संघर्ष के आसार। लोबिन हेंब्रम बिगाड़ेंगे खेल।

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झारखंड मुक्ति मोर्चा के बोरियो से विधायक लोबिन हेंब्रम राजमहल लोकसभा सीट में खेल बिगाड़ सकते हैं लेकिन बड़ा सवाल यह है कि, आखिर लोबिन किसका खेल बिगड़ेंगे।

हाइलाइट्स-

  1. लोबिन बिगाड़ेंगे चुनावी खेल।
  2. लोबिन ने लिया बड़ा जोख़िम।
  3. पहले हेमंत और अब चंपई सरकार पर हमलावर हैं लोबिन। 
  4. विजय हांसदा को चुनौती।
  5. लोबिन जीतने के लिए उतरे या हराने के लिए। 
  6. राजमहल में एक जून को मतदान।

लोबिन बिगाड़ेंगे चुनावी खेल।

आपको पता है कि, लोबिन हेंब्रम ने गठबंधन धर्म के खिलाफ जाकर राजमहल लोकसभा सीट से निर्दलीय तौर पर चुनाव लड़ने की घोषणा की और चुनावी मैदान में उतरे। पार्टी ने उनके इस कदम को देखते हुए उन्हें झारखंड मुक्ति मोर्चा से 6 साल के लिए बाहर कर दिया। राजमहल लोकसभा सीट से विजय हांसदा इंडिया गठबंधन के अधिकृत उम्मीदवार हैं। उनके सामने भाजपा ने ताला मरांडी को चुनावी मैदान में ताल ठोंक रहे हैं। आगामी 1 जून को संताल परगना की तीन लोकसभा सीटों पर मतदान होना है। इसमें दुमका, गोड्डा और राजमहल लोकसभा सीट शामिल है। इन तीन सीटों में सबसे दिलचस्प मुकाबला राजमहल में होना जा रहा है और उसके पीछे कारण हैं लोबिन हेंब्रम

लोबिन ने लिया बड़ा जोख़िम।

आखिर क्या वजह है कि, लोबिन हेंब्रम ने पार्टी से इतनी बड़ी दुश्मनी लेकर के चुनावी मैदान में उतरे। लोबिन राजनीतिक तौर पर जानते हैं कि, उनके इस कदम का बड़ा नुकसान होगा। उन्होंने बड़ा जोखिम उठाया है। झारखंड मुक्ति मोर्चा ने जब लोबिन को 6 साल के लिए पार्टी से बाहर कर दिया तो उन्होने कहा कि, उन्हे शिबू सोरेन के दिल से नहीं निकाला जा सकता है। लोबिन हेंब्रम लगातार अपनी सभाओं में यह कहते फिर रहे हैं कि, वे शिबू सोरेन के सबसे बड़े शिष्य हैं। लोबिन की नज़र भी झारखंड मुक्ति मोर्चा के वोटरों पर ही टिका हुआ है। उनको पता है कि, संताल में शिबू सोरेन को गाली देकर वोट नहीं लिया जा सकता है। लिहाजा, सोरेन परिवार के प्रति सम्मान तो रखना ही होगा। ये दीगर बात है कि, वे पूर्ववर्ती हेमंत सोरेन सरकार पर लगातार हमलावर रहे हैं।

पहले हेमंत और अब चंपई सरकार पर हमलावर हैं लोबिन। 

पेसा कानून, सीएनटी-एसपीटी एक्ट, खनन, जल, जंगल, जमीन और आदिवासी-मूलवासी विषय को लेकर लोबिन हेंब्रम विधानसभा के अंदर और विधानसभा के बाहर सरकार को घेरते रहे हैं। वे यहां तक कहते रहे हैं कि, सदन के अंदर उनको बोलने भी नहीं दिया जाता है। तत्कालीन मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन का नाम लेकर लोबिन आलोचना किया करते थे। वर्तमान मुख्यमंत्री चंपई सोरेन से भी लोबिन बहुत ज्यादा खुश नहीं हैं। ऐसे में साफ है कि, लोबिन यह मान चुके थे कि, आज न कल उन्हें पार्टी से बाहर किया जाएगा। बावजूद उसके वे लगातार पार्टी लाइन के खिलाफ बयान देते रहे।

विजय हांसदा को चुनौती।

लोबिन हेंब्रम को पता है कि, विजय हांसदा राजमहल लोकसभा सीट में अपनी अच्छी पकड़ रखते हैं। बीजेपी ने भी ताला मरांडी को जीताने के लिए पूरी ताकत लगा दी है। तमाम राष्ट्रीय नेताओं को संथाल परगना में उतारा गया है। ऐसे में फिर लोबिन हेंब्रम खुद को कहां पाते हैं। क्या झारखंड मुक्ति मोर्चा के वोटरों पर सेंधमारी कर लोबिन बड़ा सियासी उलटफेर करना चाहते हैं। अगर ऐसा होता है तो विजय हांसदा को बड़ा नुकसान हो सकता है। झारखंड मुक्ति मोर्चा को बड़ी कठिनाई का सामना करना पड़ सकता है। यही वजह है कि, हेमंत सोरेन की गैर मौजूदगी में उनकी धर्मपत्नी कल्पना सोरेन संताल परगना में लगातार कैंप कर रही हैं। कल्पना सोरेन यह बताने की कोशिश कर रही हैं कि, सोरेन परिवार और संताल का क्या रिश्ता है। उस रिश्ते को आगे लेकर जाना है। फिलवक्त हेमंत सोरेन जेल में हैं लेकिन जेल का ताला तभी टूटेगा जब केंद्र की सरकार बदली जाएगी।

लोबिन जीतने के लिए उतरे या हराने के लिए। 

सवाल उठना लाजिमी है कि, क्या लोबिन हेंब्रम चुनाव जीतने के लिए चुनाव लड़ रहे हैं या फिर विजय हांसदा को चुनाव हराने के लिए चुनावी मैदान में ताल ठोक रहे हैं। लोबिन बिना बिना तीर धनुष के निशान निर्दलीय तौर पर चुनाव जीत पाने की हालत में नहीं हैं। लेकिन उनके चुनाव लड़ने से भाजपा को पूरा फायदा होगा। राजनीतिक गलियारों में अपनी नजर रखने वाले पॉलिटिकल पंडित कहते हैं कि, विधानसभा चुनाव से पहले बहुत संभव है की सीता सोरेन की तरह लोबिन हेंब्रम भी भाजपा के परिवार में शामिल हो जाएं। बीजेपी के लिए भी यह फायदे का सौदा साबित होगा। संताल से सोरेन परिवार को बाहर करने के अभियान में ये कदम महत्वपूर्ण साबित होगा। अगर लोबिन हेंब्रम विधानसभा चुनाव से पहले बीजेपी का दरवाजा खटखटाते हैं तो बीजेपी तनिक भी देर नहीं करेगी।

राजमहल में एक जून को मतदान।

बहरहाल, अभी लोकसभा चुनाव की प्रक्रिया चल रही है। लिहाजा, इस चुनाव में लोबिन हेंब्रम सबसे बड़ा और सबसे ज्यादा नुकसान झारखंड मुक्ति मोर्चा के प्रत्याशी विजय हांसदा को करने जा रहे हैं। अगर झारखंड मुक्ति मोर्चा अपने वोट बैंक में सेंधमारी को नहीं रोक पाती है तो बड़े नुकसान के लिए तैयार रहना पड़ेगा।  गौरतलब है कि, 1 जून को राजमहल के लिए वोट डाले जाएंगे।

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