झारखंड में आदिवासी समाज के दिमाग में क्या चल रहा है। क्या लोकसभा चुनाव परिणाम के बाद विधानसभा चुनाव का परिणाम बदल जाएगा। क्या आदिवासियों ने खुद को ठगा हुआ महसूस किया है। क्या आदिवासी राज्य में आदिवासी मुख्यमंत्री के बावजूद आदिवासियों की सुरक्षा सुनिश्चित नहीं हो पाई है। आदिवासियों की भाषा संस्कृति के साथ ही जमीन भी लूटी जा रही है। क्या आदिवासी एक बार फिर से गोलबंद होने लगे हैं।
लोकसभा चुनाव का परिणाम देखें तो आदिवासियों ने खुलकर इंडिया गठबंधन के पक्ष में वोट किया। यही वजह है की पांच में से पांच रिजर्व एसटी सीटों पर इंडिया गठबंधन को जीत मिली। ऐसे में माना जा रहा है कि, विधानसभा चुनाव में भी आदिवासी इंडिया गठबंधन के पक्ष में वोट करेंगे। हालांकि 7 जून को रांची में विभिन्न आदिवासी संगठनों की बैठक हुई जिसमें कुछ और ही बात समझ में आई।
आदिवासी जनपरिषद के नेता प्रेम शाह मुंडा कहते हैं कि, आदिवासी कब तक पिछलग्गु बनकर रहेंगे। कभी इस पार्टी कभी उस पार्टी के चक्कर में रहेंगे। आदिवासी खुद की पार्टी नहीं बना सकते हैं। जयपाल सिंह मुंडा ने तो करके दिखाया था। हम इस पर विचार मंथन कर रहे हैं।
कल तक जयराम महतो की आलोचना करने वाले प्रेम शाही मुंडा कहते हैं कि, एक अकेले लड़के ने दिखा दिया कि, आदिवासी मूलवासी समाज चाहे तो बदलाव ला सकता है। जयराम महतो ने खुद के दम पर साढ़े तीन लाख वोट लाकर एक नहीं राह दिखाई है। लिहाजा, आदिवासियों को भी अब अपना रास्ता खुद ही चुनना होगा। उन्होंने कहा कि, अगर कुड़मी समाज खुद को आदिवासी बनाने की मांग छोड़ दे तो फिर आदिवासी और मूलवासी एक मंच पर आ सकते हैं।
प्रेम शाही मुंडा की बातों से स्पष्ट है कि, लोकसभा चुनाव में आदिवासी समाज ने जिस इंडिया गठबंधन को वोट किया। वही ट्रेंड विधानसभा चुनाव में नहीं रहेगा। विधानसभा का चुनाव स्थानीय मुद्दों पर लड़े जाएंंगे। लिहाजा, उन मुद्दों पर चंपई सोरेन सरकार ने क्या कुछ किया है। उसका आकलन किया जाएगा। खास करके सीएनटी एसपीटी एक्ट, पेसा कानून, जल जंगल जमीन की सुरक्षा, आदिवासियों की जमीन की सुरक्षा समेत कई विषयों पर वर्तमान सरकार के रुख का आकलन होगा और उसी की बुनियाद पर वोट डाले जाएंगे। लिहाजा विधानसभा चुनाव इंडिया गठबंधन के लिए भी बड़ी चुनौती लेकर आ रहा है।