क्या झारखंड मुक्ति मोर्चा अपने सबसे मुश्किल दौर से गुजर रही है. पार्टी के सबसे लोकप्रिय नेता हेमंत सोरेन जेल में हैं। शिबू सोरेन का स्वास्थ्य ठीक नहीं है। सीता सोरेन ने पार्टी छोड़ दी है। लोबिन हेंब्रम और चमरा लिंडा सरीखे विधायक पार्टी लाइन के खिलाफ स्टैंड ले रहे हैं। ऐसे में क्या पार्टी को समेट कर रखना और एकजुट रखना पार्टी नेताओं को मुश्किल हो रहा है। शुक्रवार को मुख्यमंत्री आवास में झारखंड मुक्ति मोर्चा विधायक दल की बैठक हुई खबरों के मुताबिक इसमें लोबिन हेंब्रम और चमरा लिंडा शामिल नहीं हुए। चमरा लिंडा वैसे भी पार्टी की गतिविधियों से दूर ही रहते हैं। जहां तक बात लोबिन हेंब्रम की है तो वे लगातार पार्टी से नाराज चल रहे हैं। वे राजमहल लोकसभा सीट से चुनाव लड़ना चाहते हैं अगर पार्टी उनका टिकट नहीं देती है तो वो निर्दलीय भी चुनाव लड़ने को तैयार हैं। इससे पहले साहिबगंज के भोगनाडीह में उन्होंने सरकार और पार्टी के खिलाफ कार्यक्रम करना चाहा जिसे पार्टी नेताओं ने रोक दिया।
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लोकसभा चुनाव से ठीक पहले झामुमो अपने विधायकों नेताओं को अगर समेट कर और एकजुट नहीं रख पाती है तो 14 लोकसभा सीटों पर पार्टी और गठबंधन का परफॉर्मेंस खराब हो सकता है। हेमंत सोरेन की गैर मौजूदगी सबसे बड़ा कारण है जिसकी वजह से पार्टी कहीं ना कहीं खुद को असहज महसूस कर रही है। कल्पना सोरेन ने भले ही मोर्चा संभाल लिया है लेकिन अभी बहुत कुछ करना बाकी है। पार्टी की दूसरी मुश्किल ये है कि,पार्टी में कोई दूसरा लाइन तैयार नहीं है जो हेमंत सोरेन की गैर हाजिरी में पूरी तरह से पार्टी के कामकाज को देख सके और पार्टी के पदाधिकारी कार्यकर्ताओं और झारखंड की जनता को वो स्वीकार्य भी हो सके। झारखंड मुक्ति मोर्चा एक तरफ लोकसभा चुनाव की तैयारी में लगी है तो दूसरी तरफ पार्टी के अंदर खाने जारी तोड़फोड़ को भी मैनेज करने में जुटी है।