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Jharkhand- भाजपा के आदिवासी चेहरों की हार। क्या हैं मायने।

झारखंड/बिहार राष्ट्रीय ख़बर विधानसभा चुनाव

लोकसभा चुनाव में एनडीए को झारखंड में भारी झटका लगा है। इस बार एनडीए के पास कोई भी आदिवासी चेहरा नहीं है। खूंटी से अर्जुन मुंडा हार चुके हैं। दुमका से सीता सोरेन और सिंहभूम से गीता कोड़ा के साथ ही लोहरदगा से समीर उरांव की भी हार हो चुकी है। ऐसे में बीजेपी के पास कोई भी एसटी चेहरा नहीं है।

झारखंड की सभी आदिवासी रिजर्व सीटों में हार गई भाजपा।

2019 के विधानसभा चुनाव में अर्जुन मुंडा को आदिवासी मामलों का केंद्रीय मंत्री बनाया गया था।  इस बार इसके लिए कोई सांसद झारखंड से नहीं है। इससे स्पष्ट है कि, केंद्र में आदिवासी चेहरा झारखंड के अलावा दूसरे राज्य से हो सकते हैं। केंद्रीय मंत्रिमंडल के लिए ग़ैर आदिवासी चेहरे की बात करें तो अन्नपूर्णा देवी के साथ ही निशिकांत दुबे और सीपी चौधरी के नाम पर चर्चा की जा रही है। वैसे रांची के सांसद संजय सेठ का नाम भी केंद्रीय मंत्रिमंडल के लिए चल रहा है।

आदिवासी सीटों में भाजपा की हार विधानसभा चुनाव के लिए अच्छे संकेत नहीं है। सरना धर्म कोड और डी-लिस्टिंग जैसे मुद्दों को लेकर आदिवासियों में खासा नाराजगी है। धर्मांतरण को लेकर भी बीजेपी की बयानबाजी से आदिवासी समाज डरा सहमा हुआ है।

सीता सोरेन और गीता कोड़ा के चेहरे पर हताशा और निराशा के निशान।

ऐसा नहीं है कि, भाजपा ने आदिवासियों को रिझाने की कोशिश नहीं की। भगवान बिरसा मुंडा की जयंती को पूरे देश भर में मनाया जाने लगा। खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उल्लीहातु जाकर बिरसा मुंडा के परिजनों से मिलते हैं। अर्जुन मुंडा को आदिवासी मामलों का मंत्री तक बनाया जाता है। बावजूद इसके बीजेपी एक भी आदिवासी सीट जीत नहीं पाती है। ऐसे में केंद्रीय मंत्रिमंडल में अब आदिवासी मामलों के मंत्री के लिए झारखंड से कोई एसटी चेहरा नहीं बचा है।

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