प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दो दिवसीय झारखंड दौरे के दौरान आदिवासी संगठनों ने कई सवाल उठाए। पूछा कि, आखिर पीएम ने सरना धर्म कोड के विषय पर क्यों नहीं कुछ कहा। प्रधानमंत्री ने जल, जंगल, ज़मीन के विषय पर आखिर क्यों खामोशी बरती।
इस बीच 7 मई को कांग्रेस के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी का चाईबासा में चुनावी सभा हुआ। इस दौरान उन्होंने कहा कि, किसी भी बीजेपी के नेता से आप पूछिए कि, जल, जंगल और ज़मीन पर पहला किसका हक है तो वे इसका जवाब नहीं देंगे। वे कहेंगे कि, आदिवासी तो वनवासी हैं। आप हक और अधिकार की बात ना करें।
क्या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राहुल गांधी के दौरे पर यह बुनियादी फर्क देखा जा सकता है। यही वजह है कि, पीएम के दौरे के बाद आदिवासी संगठनों ने बैठक कर इंडिया गठबंधन के साथ खड़े रहने की बात कही। खुद राहुल गांधी कह चुके हैं कि, अगर उनकी सरकार बनती है तो हम आदिवासियों को सरना धर्म कोड देंगे। यानी आदिवासियों को उसकी पहचान। उसकी शिनाख्त और उसकी आइडेंटी देंगे।
क्या राहुल गांधी आदिवासियों की इस नाराजगी को पहचान चुके हैं। क्या कांग्रेस यह जानती है कि, अगर आदिवासियों का वोट लेना है तो उनकी बात करनी होगी। जल, जंगल, जमीन के मुद्दे पर उनके साथ खड़े रहना होगा।
आगामी 11 मई को भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का झारखंड में दौरा प्रस्तावित है। अपने दो दिवसीय दौरे के दौरान प्रधानमंत्री ने झारखंड में लूट कांड, भ्रष्टाचार, संविधान और आरक्षण को लेकर के इंडिया गठबंधन को घेरने की कोशिश की। साथ ही परिवारवाद को लेकर भी इंडिया गठबंधन की पार्टियों पर निशाना साधा। हालांकि, प्रधानमंत्री ने सरना धर्म कोड के विषय पर कुछ नहीं कहा।
आपको पता है कि, सरना धर्म कोड से संबंधित एक बिल पारित करके झारखंड विधानसभा से राजभवन भेजा गया है लेकिन अभी तक उस पर आगे की कार्रवाई नहीं हुई है। इंडिया गठबंधन के लोग कहते हैं कि, केंद्र की मोदी सरकार नहीं चाहती कि, आदिवासियों को उसका हक और अधिकार मिले। यही वजह है कि, खुद प्रधानमंत्री भी सरना धर्म कोड पर खामोश रह जाते हैं। राहुल गांधी ने जिस तरह से जल, जंगल, जमीन और आदिवासियों की पहचान का विषय उठाया। उससे तो यह साफ है कि, कांग्रेस को लगने लगा है कि, आदिवासियों का वोट चाहिए तो उनकी बात सुननी पड़ेगी। उनकी बात कहनी पड़ेगी।