रांची के संत जेवियर्स कॉलेज में “गौरव-गरिमा के साथ विकास: आदिवासियों के सन्दर्भ में” व्याख्यान का आयोजन किया गया। अर्थशास्त्र विभाग और आईक्यूएसी द्वारा इसका आयोजन किया गया। इस दौरान ज़ेवियर इकॉनोमिक सोसाइटी का गठन भी किया गया। कार्यक्रम का उद्घाटन कॉलेज के प्रिंसिपल डॉक्टर फादर एन. लकड़ा और मुख्य अतिथि डॉक्टर जोसेफ मरियानुस कुजूर एस.जे. ने दीप प्रज्ज्वलन कर किया।
व्याख्यान में अर्थशास्त्र विभाग ने विषय पर प्रकाश डालते हुए जनजातीय स्थिति और भूमिका को स्पष्ट किया। कार्यक्रम के मुख्य वक्ता डॉ. कुजूर द्वारा आदिवासी विकास पर चर्चा, मुख्यधारा के विकास प्रतिमान के विपरीत, जिसमें ‘आर्थिक विकास’ पर जोर दिया जाता है। साथ ही सामाजिक, सांस्कृतिक आर्थिक, आध्यात्मिक, राजनीतिक, पर्यावरणीय और मानवाधिकार आयामों को ध्यान में रखते पर चर्चा की गई।
प्राचार्य डॉ. एन. लकड़ा, एस.जे. ने अपने वक्तव्य में अर्थशास्त्र की भूमिका बताते हुए कहा ” बिना अर्थशास्त्र के हम कुछ भी नहीं सोच सकते हैं। उन्होंने यह भी कहा कि, विकास की दशा व दिशा सुनिश्चित होनी चाहिए जिससे किसी का अहित ना हो सके| संवैधानिक मौलिक शिक्षा का ज्ञान भी जरूरी है।
अर्थशास्त्र विभाग के विभागाध्यक्ष डाॅ. मारकुस बारला ने डॉक्टर मारियानुस कुजुर एस.जे. की शिक्षा के बारे में विस्तृत जानकारी दी। साथ ही उनका दृष्टिकोण छात्रों के बीच व्यावहारिक सीख, प्रतिभा और नव-विचारों को प्रदर्शित करना एवं भूमिकाएँ विकसित करना है। डॉ. धीरजमणि पाठक ने छात्रों के लिए सांस्कृतिक गतिशील आकांक्षाएं और सामान्य संसाधनों के आदान-प्रदान की बात कही।
कार्यक्रम में आमंत्रित मुख्य वक्ता डॉक्टर जोसेफ मारियानुस कुजुर, एस.जे. ने जनजातियों के पिछड़ेपन का एक बड़ा कारण खुद की पहचान को स्थापित न कर पाना बताया| पहले स्वास्थ्य को शारीरिक स्वास्थ्य के रूप में परिभाषित किया जाता था। अब यह सामाजिक सांस्कृतिक और आर्थिक के रूप में बदल चुका है। उन्होंने जनजातीय स्थिति को जनसंख्या के आधार पर दर्शाते हुए एक आंकड़ा प्रदर्शित किया। जिसमें 2001 की जनजातीय जनसंख्या को 84 मिलियन बताया। 2011 की जनजातीय जनसंख्या के आधार पर 121 मिलियन बताया है। उन्होंने बताया कि, सरकार की बहुत सी योजनायें इसलिए सफल नहीं हो पाती क्योंकि मानव विकास को ज्यादा तव्वजो न देते हुए उसके आर्थिक विकास पर ध्यान देते हैं| उनका कहना है कि, जनजातीय समुदाय के लिए भूमि ही जीवन है। वह भूमि के रखवाले माने जाते हैं। जनजातीय समुदाय की आत्मा प्रकृति में उपस्थित पेड़ -पौधों, जंगल, जमीन, जानवर में बसती है। यह सही समय है कि, हम समावेशी और सतत विकास के लिए आदिवासी विकास के दृष्टिकोण पर फिर से विचार करें।
ौरव्याख्यान में रजिस्ट्रार डॉ. फादर प्रभात केनेडी सोरेंग, परीक्षा नियंत्रक प्रो. बी. के. सिन्हा, विभागाध्यक्ष डॉ. मारकुस बारला, डॉ. विनय कुमार पाण्डेय, डॉ. धीरजमणि पाठक, प्रो. ज़ेबा अशरफ, प्रो. आशीष रंजन, प्रो. अंशु निभा कुजूर और छात्र-छात्राएं मौजूद थीं। कार्यक्रम का संचालन प्रो. जेबा अशरफ ने किया।