झारखंड कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष एवं पूर्व मंत्री बंधु तिर्की ने राजभवन के निर्णय पर सवाल उठाए हैं। उन्होंने कहा कि, अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थानों को चांसलर पोर्टल के माध्यम से ही नामांकन करने के लिए बाध्य करना कानूनी रूप से गलत है। उन्होंने कहा कि, यह संविधान के अनुच्छेद 30(1) का उल्लंघन भी है। बंधु तुर्की ने राजभवन पर आरोप लगाते हुए कहा कि, उन्हें अपने एजेंडे के बजाए संवैधानिक कर्तव्यों को पूरा करना चाहिए। राजभवन पर गंभीर आरोप लगाते हुए कहा कि, उन्हे भारतीय जनता पार्टी के घोषित एजेंडे पर काम नहीं करना चाहिए और संवैधानिक दायित्वों का निर्वहन करना चाहिए।
बंधु तिर्की ने कहा कि, चांसलर पोर्टल के माध्यम से एडमिशन लेने के लिए बाध्य करना और नहीं लेने पर विश्वविद्यालय द्वारा पंजीकरण नहीं किए जाने का निर्णय गलत है। इस मामले में अल्पसंख्यक कॉलेजों ने आपत्ति दर्ज कराई है। राज्यपाल का यह निर्णय संविधान के अनुच्छेद 30 एक का उल्लंघन है। इसमें साफ तौर पर अल्पसंख्यकों को अधिकार दिया गया है कि, वे न केवल शैक्षिक संस्थानों की स्थापना करेंगे। बल्कि उसके प्रशासन और प्रबंधन के लिए भी स्वतंत्र होंगे।
बंधु तिर्की ने कहा कि, संविधान अल्पसंख्यकों को शैक्षणिक संस्थान स्थापित करने और उसका संचालन एवं प्रबंधन करने का अधिकार देता है। भारतीय संविधान में सांस्कृतिक और शैक्षिक अधिकारों के अंतर्गत अनुच्छेद 29 और अनुच्छेद 30 में अल्पसंख्यकों के हितों की सुरक्षा की बात कही गई है। जिसके अनुच्छेद 30(1) में भारत के अधिकार क्षेत्र में रहने वाले अल्पसंख्यकों को अपनी भाषा, लिपि, साहित्य और संस्कृति को संरक्षित करने के साथ ही अपनी संस्कृति और विरासत की सुरक्षा के लिए अपनी पसंद की शैक्षिक संस्थान स्थापित करने और उसके संचालित करने का प्रावधान है। बंधु तिर्की ने कहा कि, अगर राज भवन ने अल्पसंख्यक महाविद्यालयों के इस संवैधानिक एवं व्यवहारिक मांग के अनुरूप सकारात्मक निर्णय नहीं लेते हैं तो राजभवन के समक्ष आंदोलन करने के लिए बाध्य होना पड़ेगा।